तालाब वहीँ था, कश्ती वहीँ थी, लहरें बस यूहीं बह रही थी, और हवा भी बस युहीं मुस्कुरा रही थी,
मगर शायद अपनी परछाई को देखने चाँद आया था अमावस की रात को.
तारें वहीँ थे, बादल वहीँ थे, और बादल से निकलती बूँदें बस यूहीं मचल कर गा रही थी,
मगर शायद बादल के पीछे छुपने, चाँद आया था अमावस की रात को.
पेड़ वहीँ थे, पत्ते हवा का साथ आज भी दे रहे थे, और शाखाओं पर बैठे पंछी आज भी प्यार के अफ़साने सुना रहे थे,
मगर शायद अपने प्यार के किस्से सुनाने, चाँद आया था अमावस की रात को...
धर्म की बातें आज भी कानों में गूँज रहीं थी, आंसू एक मुस्कान को आज भी ढूंढ़ रही थी,
और वहीँ एक बुढ़िया खून की उस नदी में बादल की उन बूंदों को तलाश रही थी,
मगर शायद उस रात का गवाह बनने, चाँद आया था अमावस की रात को.
प्यार की इस धूप में नफरत का अँधेरा आज भी था, आंसू के बाढ़ में बहते उस एक कश्ती का इंतज़ार आज भी था,
और वहीँ एक गरीब आग की लपटों के बीच वो बहती हवा और मुस्कुराती लहरों को तलाश रहा था,
मगर शायद उस रात को मजबूर बन कर रहने, चाँद आया था अमावस की रात को...
खून के फव्वारे आज भी पहाड़ की चोटी को छू रहे थे, लाशों के ढेर आज भी इंसानियत का वो पुराना चेहरा ढूंढ़ रहे थे,
और वहीँ एक मासूम उन तलवारों के बीच प्यार के उस पंछी को तलाश रहा था,
मगर शायद उस रात के काले अँधेरे को देखने, चाँद आया था अमावस की रात को.
वो हवा का बहना तो आज भी था,
वो लहरों का टहलना तो आज भी था,
वो ज़िन्दगी का चलना तो आज भी था,
वो समय का बदलना तो आज भी था,
वो कश्ती का बहना तो आज भी था,
वो बादल का निकलना तो आज भी था,
वो रो कर मुस्कुराना तो आज भी था,
वो ग़म का भूलना तो आज भी था,
मगर शायद गोधरा की उस रात का इतिहास बनने, चाँद आया था अमावस की रात को.
Soulful! Whenever I read this...i get goosebumps...
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